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History

समाज के 72 गौत्रों का पूर्ण विवरण -गौत्र (अल्ल),ऋषि,प्रवर ,कुल देवी, उत्पत्ति इतिहास

गौत्र (अल्ल),ऋषि,प्रवर ,कुल देवी , उत्पत्ति का विवरण सहित 

जाने- गोत्र और प्रवर में क्या अंतर है? 

गोत्र का अर्थ होता है उस ऋषि का जिसकी वंश परंपरा के हम अभिन्न अंग हैं। प्रवर का अर्थ है कि किसी गोत्र परंपरा में प्रादुर्भूत हुए लब्धकीर्ति कुछ श्रेष्ठ ऋषि। प्रवर को आर्षेय भी कहते हैं। प्रवर की संख्या प्रायः 3 से 5 होती है।

(1) अटोलिया ऋषि शांडिल्य प्रवर शांडिल्य,असिल ,देवल।कुल देवी सुरण्ड।उत्त्पत्ति विवरण -पुरातन काल में शत्रु की सेना की तैयारियों पर नजर रखने वाले पहले अग्रटोलिया फिर 'अटोलिया' कहलाए।

(2) आंकड- ऋषि –अव्य "। प्रवर- अव्य,बलि,सारस्वत "।कुल देवी-तिलोंधहढ माता।राजा खण्डेलगिरी के समय राज्योन्नति के लिए जनगणना आँकड़े एकत्रित करने वाले पहले आँकड और फिर "कहलाये"।

(3) आमेरिया- ऋषि & प्रवर-आलम्यान। कुल देवी -आमीन। स्थान -दूदी, आम, लोदा (मनोहपुर से 3 किमी पूर्व में) "।उतपत्ति विवरण-जयपुर की प्राचीन राजधानी आमेर के निवासी आमेरिया' से विख्यात हुए।

(4) ओढ़ - ऋषि & प्रवर -गौतम। कुल देवी –नावड़। प्रतिस्पर्धा, मुकाबला या बराबरी का राजस्थानी शब्द है होड़। प्रांतों के निवासी साहसिक कार्यों में होड़ करने वाले कालान्तर में 'ओढ' कहलाए।

(5) कट्टा- ऋषि –अत्री। प्रवर –आत्रेय, शतालप,सांख्य।कुल देवी –आमन।दुश्मन की फौज की रसद काट देने वाले 'कट्टा' गौत्र के अधिकारी हुए।

(6) कठोरिया- ऋषि – भारद्वाज।प्रवर -भारद्वाज,आंगिरस. बार्हस्पत्य।कुल देवी - भंवर केठर ।कठोरपरिश्रमी, वीर योद्ध को 'कठोरिया' गौत्री कहा जाने लगा।

(7)कायथवाल- ऋषि- जैमिन प्रवर – जेमिन, उतथ्य, सांस्क्रति कुलदेवी – जीण माता .काया यानी शरीर को सामान्य स्थिति में रखते हुए कायाकल्प के पूर्व सिद्ध हस्त लोग 'कायथवाल' कहलाये।

(8) काठ- ऋषि – अनाव्रक। प्रवर –गार्म्य,गौतम,वशिष्ठ।कुल देवी- मीतर ।लकड़ी का व्यवसाय करने वाले 'काठ' गोत्र से प्रचलित हुए।

(9) कासलीवाल – ऋषि- जेमिन।प्रवर -जैमिन,उतथ्य,साँस्कृति ।कुल देवी –जीण माता।कांसे धाती के काम करने वाले 'कासलीवाल' कहलाये।

(10) किलकिलिया - ऋषि-आंगिरस। प्रवर- आंगिरस,वशिष्ठ, वार्हस्पत्य।कुल देवी-नन्दभगोनी।कबूतर व अन्य पक्षियों के व्यवसाय करने वाले 'किलकिलिया' कहलाये।

(11) कूलवाल-  ऋषि–शांडिल्य।प्रवर-शांडिल्य,असित,देवल।माता-सुरंड उत्तर भारत में स्थित कुल्लू मनाली घाटी के सूर्यवंशी राजपूत के वंशज 'कूलवाल' गौत्र के अधिकारी हुए।

(12)केदावत - ऋषि-गौतम| प्रवर-गौतम,वशिष्ट, वार्हस्पत्य |कुल देवी -नावड़ | केदार पर्वत के इर्द गिर्द रहने वाले वैश्य जो केदार पर्वत पर सदृश अटल होकर युद्ध में लड़ते थे वहीं शूरवीर ‘केदावत' गोत्र से जाने गये |

(१३)कोडिया (गौरवाल)- ऋषि-कांचन|प्रवर -अवस्थ,देवल,देवराज |कुल देवी-कनकस|कोडियों के व्यापारी ‘कोडिया’गोत्री कहलाये | 

(14)खारवाल -ऋषि-जैमिन।प्रवर -जैमिन,उतथ्य,सांकृति।नमक एवं उससे मिश्रितवस्तुओं के निर्माता एवं व्यवसायी 'खारवाल' कहलाये जाने लगे।

(15)खूंटेटा -ऋषि-काश्यप। प्रवर -काश्यप,अवत्सार, नैधव।अपनी आन बान शान से लड़ने वाले शूरवीर रण में जहां खूंटा टेक देते थे, वे कालान्तर में 'खूंटेटा' कहलाये।

(16)गोलिया(गोदाजिया)-ऋषि-शांडिल्य। प्रवर-शांडिल्य,असित,देवल।शादी ब्याह में काम आने वाले सामानों के भण्डार रखने वाले 'गुदराइया' फिर अपभ्रंश होकर गोलिया  कहलायें ।

(17)घीया-ऋषि-वशिष्ठ। प्रवर -वशिष्ठ,शक्ति,पाराशर।कुलदेवी-बमेरी। घी के व्यवसायी 'घीया' गौत्र वाले हुए।

(18)जघिनिया-ऋषि -शांडिल्य। प्रवर -शांडिल्य,असित,देवल।कुलदेवी-बमूरी।भरतपुर क्षेत्र में जघीना रियासत के निवासी जघीनिया से 'जंघानिया' कहे जाने लगे ।

(19)जसोरिया-ऋषि- वशिष्ठ। प्रवर -वशिष्ठ,शक्ति,पाराशर।दक्षिण भारत में स्थित जैसोर के निवासी जसोरिया कहलाये।

(20)झालानी-ऋषि-काण्वायन। प्रवर -काण्वायन,आंगिरस,वार्हस्पत्य,अवत्सार,नैधव।  कुलदेवी-धावड़। राजस्थान स्थित झालावाड़ रियासत के निवासी  झालाबाजी फिर झालाणी बाद में 'झालानी' कहलाये ।

(21)टटार-ऋषि -जैमिन ।प्रवर -जैमिन,उतथ्य,सांकृति। कुलदेवी -जीण। टाटरी रासायनिक पदार्थ के

औषधि व्यवसायी एवं निर्माता 'टटार' कहलाये ।

(22)ठाकुरिया -ऋषि-वशिष्ठ,प्रवर -वशिष्ट, शक्ति,पाराशर। कुलदेवी बमुरी। ठिकानेदार शब्द से ठाकुर फिर ठाकुर का अपभ्रंश के नीचे 'ठाकुरिया' हुआ।

23) डंगायच - ऋषि सौकालीन।प्रवर- सौकालीन, आंगिरस, वार्हस्पत्यरण । कुलदेवी -सिकराय। रण में  एक एक डग  नाप तौल कर रखने वाले यौद्धा 'डंगायच' कहे जाने लगे ।
(24). डांस- ऋषि- वैयाधपद्य। प्रवर -सांसृति,प्रवत्सार,नेधव। कुलदेवी -विनजिल । दुश्मन से रक्षा करने वाले एवं आक्रमणकारियों को सर्प की तरह डस लेते थे। 'डांस' कहलाये।
(25) तमोलिया - ऋषि-जैमिन। प्रवर- जैमिन,उतथ्य,सांकृति। कुलदेवी-जीण ।ताम्बूल अर्थात् पान का व्यवसाय करने वाले 'तमोलिया' कहलाये ।
(26) तांबी- ऋषि-वासुकि। प्रवर-अक्षोम्य,अनन्त,वासुकी। कुलदेवी-नागिन। ताम्बा धातु का व्यवसाय करने वाले 'ताम्बी' कहे जाने लगे ।
(27) टोडवाल-ऋषि-अत्रि। प्रवर- आत्रेय,शातातप, सांख्य । कुलदेवी आतेंन(आंतन) ।बंगाल प्रान्त के टोडवाल वंशके चन्द्रवंशी राजपूत 'तोड़वाल' हुए ।
(28) दुसाद-ऋषि -जैमिन।प्रवर जैमिन,उतथ्य,सांकृति।कुलदेवी -जीण माता। जयपुर के दौसा ग्राम के निवासी 'दुसाद' कहे जाने लगे।
(29) धामानी- ऋषि-शुनक।प्रवर- शुनक,शोनक ,गृत्समद। विदेश ज्ञान में प्रवीण पहले धामवाजी फिर 'धामानी' कहलाये ।
(31) धौकरिया-ऋषि-कोडिल्य।प्रवर- कौडिल्य,स्तिमिक,कौत्स। कुलदेवी- डावरी ।धोकनी का अर्थ है धातुओं को गलाना । विभिन्न प्रकार की धातुओं को गलाने एवं धौकनियो के निर्माता 'धोकरिया' गौत्र से जाने लगे ।
(31)निरायणवाल- ऋषि वशिष्ठ। प्रवर -वशिष्ठ,शक्ति,पाराशर। कुलदेवी बमूरी ।नारायण अर्थात् ईश्वर के अनन्य भक्त 'निरायणवाल' गौत्र से जाने लगे ।

(32)नाटानी- ऋषि-जैमिन। प्रवर-जैमिन,उतथ्य,सांकृति। कुलदेवी-जीण ।नाटकों के निर्माता 'नाटानी' कहलाये । नाटानी परिवार के पूर्व पुरूष ही नाटकों का श्री गणेश करते थे ।

(33) नेनावा -ऋषि- कृष्णात्रय। प्रवर- क्रष्नात्रय,आत्रेय,वास। कुलदेवी-वक्र।  

(34) नेनीवाल- ऋषि-अत्री।प्रवर-आत्रेय, शालाताप,सांख्य।कुलदेवी-आंतन।नाहन राज्य के निवासी जो बाद में राजा खण्डेलगिरी की शौर्य प्रतिभा से प्रभावित होकर खण्डेला में जा बसे और वहीं व्यवसाय  करने लगे 'नहनीवाल' कहलाये।।

(35)बडगोती(पचलेरा,कूड)-ऋषि -शांडिल्य।प्रवर -शांडिल्य,असित,देवल। कुलदेवी-सुरंड।यह तीनों समान
गोत्री माने गये ।

(36) पागूवाल(पाबूवाल)- ऋषि-मौदुगल ।प्रवर- और्व्य,च्यवन,भृगु,जमदग्नि,आप्नुवान। कुलदेवी-मडेर।विभिन्न प्रकार की पगड़ियों के अविष्कारक एवं निर्मातापहले पागूवाल फिर 'पाबूवाल कहलाये ।
(37)पाटोदिया-ऋषि-जेमिन। प्रवर- जैमिन,उतथ्य,सांकृति। कुलदेवी-जीण। उत्तर भारत में स्थित पाटादी के निवासी 'पाटोदिया' कहे जाने लगे ।
(38)पीतलिया-ऋषि-विश्वामित्र। प्रवर - विश्वमित्र,मरीचि,कौशिक। कुलदेवी बमूरी। पीतल धातु के निर्माता एवंव्यवसाय करने वाले'पीतलिया' कहे जाने लगे।
(39) फरसोइया- ऋषि -वशिष्ठ। प्रवर- वशिष्ठ,शक्ति, पाराशर। कुलदेवी सिरसा।युद्ध फरसे का उपयोग करने वाले 'फरसोइया' कहलाये।
(40)बटवाड़ा -ऋषि -सौपायन। प्रवर- और्व्य,च्यवन,भृगु,जमदग्नि,आप्नुवान। कुलदेवी-बमुरी। मथुरा के बृजनगरी के अंचल के बंशीवट निवासी जब राजा खण्डेलगिरी के यश व वैभव से लाभान्वित होने खण्डेला (राजस्थान) पहुंचे तो पहले बंशी बटवारे फिर बाद में 'बटवारा' कहलाये।
(41)बड़ाइया (बड़ाया)-ऋषि- पाराशर प्रवर-पाराशर शक्ति वशिष्ठ। कुलदेवी-सिरसा।इस वंश के लोग दान पुण्य, वैभव, व्यापार व रणकौशल में निपुण होते थे। इनकी बड़ाई हर जगह होती थी अतएव बड़ाइया हुए ।
(42) बडहरा(बढेरा)- ऋषि- जमदग्नि । प्रवर- जमदग्नि ,परसराम,वशिष्ठ।कुलदेवी- जमबांध(जयवाय)। कपूरी पान के लिये प्रसिद्ध मध्य प्रदेश स्थित बड़नेरा निवासी आरम्भ में बड़नेने फिर |बड़ेने बाद में 'बड़ेरा' कहलाये।

(43) बनावड़ी-ऋषि -शक्ति ।प्रवर- शक्ति, पाराशर,वशिष्ठ ।कुलदेवी- सार।
(44) बंब- ऋषि -सावर्णि।प्रवर -सावर्णि।कुलदेवी-सावरदे।इनके पूर्वज शिव के अनन्य भक्त थे यही 'बम्ब' हुए ।
(45)बाजरगान -ऋषि-कात्यायन। प्रवर अत्रि,भृगु,वशिष्ठ।कुलदेवी-कोलाइन।योद्धा, सूर्यवंशी राजपूतों के वंशज, बजरंगबली के उपासक बजरंगवाल या 'बाजरधान' कहलाये जाने लगे ।
(46) बावरिया -ऋषि- पाराशर।प्रवर- पाराशर,शक्ति,वशिष्ठ।कुलदेवी-सिरसा।बावड़ी अर्थात् तालाब - लोगों की आवश्यकता अनुसार जगह जगह बावड़ी खुदवाने वालों के वंशज 'बावरिया' कहलाये ।(47)बिमवार (बीमवाल)- ऋषि- विष्णु।प्रवर -विष्णु,वृद्धि,कौरव।कुलदेवी-निमवासिनी। चित्रों का नये सिरे से निर्माण करने वालों के वशंज प्रतिबिम्बवाल बाद में धीरे-धीरे 'बीम्बवाल' कहलाने लगे ।
(48) बुढवारिया -ऋषि- वासुकी।प्रवर- अक्षोम्य,अनन्त,बासुकी।कुलदेवी-नागिन। चीनी के बुरे या खाण्ड के निर्माता एवं व्यवसायी बुढ़वारिया कहे जाने लगे।

(49) बूसर -ऋषि -पारशर।प्रवर- पाराशर,शक्ति,वशिष्ठ।-सिरसा। भूसे का व्यवसाय करने वाले भूसर और फिर 'बूसर' कहलाये गये ।
(50) भण्डारिया -ऋषि- जैमिन।प्रवर- जैमिन,उतथ्य,सांकृति।कुलदेवी -जीण। अधिकाधिक मात्रा में स्टाक  रखते हुए व्यवसाय करने वाले वैश्य 'भण्डारिया' कहलाने के अधिकारी हुए ।
(51)भांगला (मेंहता)- ऋषि -शुनक।प्रवर- शुनक,शौनक,गृत्समद।भांग का व्यापार करने वाले ‘भांगला' कहलाये जाने लगे । कुलदेवी-सेतलवास।
(52) भुखमारिया- ऋषि- जैमिन।प्रवर- जेमीन,उतथ्य,सांकृति।कुलदेवी-आमण।भूख पर नियंत्रण करने वाले संत वृति के सज्जन 'भुखमारिया' कहे जाने लगे ।
(53) महरवाल- ऋषि- कानव।प्रवर-: काण्व,अश्वत,देवल।कुलदेवी-चामुंडा माता। मध्य प्रदेश के सतना जिले के मैहर निवासी 'महरवाल गोत्र के अधिकारी हुए।

(54)माठा –ऋषि-वात्स्य ।प्रवर और्व्व,च्यवन,भृगुज,मदग्नि,आप्नुवान। कुल देवी -बतवीर।मोठ के संग्रहकर्ता एवं व्यवसायी पहले मोठा और फिर 'माठा' `कहे जाने लगे।

(55) मानिक बोहरा- ऋषि -सांकृति ।प्रवर-अव्याहार,इहत्र,सांकृति ।कुलदेवी -आमण माता।माणिक व मोतियों का व्यवसायी पहले मोठा और फिर माणिक बोहरा कहे जाने लगे ।

(56)मामोडिया-ऋषि-शंडिल्य।प्रवर-शंडिल्य,औसत,देवल।कुलदेवी-सुरण्ड। कीगमोडिया का अपभ्रंश है मामोडिया | राजस्थान की कहावत के अनुसार-लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले ।
कपूत । लीक छोड़ तीनों चले शाइट, सिह, सपूत । शाइट सिंह, सपूत के वंशज ही मामोडिया कहलाए गये ।

 (57)माली- ऋषि-पाराशर। प्रवर- पाराशर, शक्ति,वशिष्ठ। कुलदेवी-सिरसा।राजा खण्डेलगिरी के समय स्वर्ण व चांदी की माली के निर्माता व व्यवसायी ‘माली' कहे जाने लगे ।

(58) मंगोलिया -ऋषि -अलाम्यान। प्रवर- अलाम्यान। कुलदेवी-टकवासन।रूस के मंगोलिया प्रान्त के वाणिज्य व्यवसायी भारत आयेऔर खण्डेला में जा बसे । कालान्तर में वहीं 'मंगोडलिया' कहलाये ।

(59)माचीवाल-ऋषि-शक्ति।प्रवर-शक्ति,पराशर,वशिष्ठ।कुलदेवी-सार।अलवर राज्यान्तर्गत माचाडी
के निवासी माचाड़ीवाले कहलाये । जिसका  अपभ्रंश है - माचीवाल। 

(60)मेठी-ऋषि-अगस्ति। प्रवर- अगस्ति,दाधीच,जैमिन। कुलदेवी-अमरल(नोसल)।राजनीति में निपूर्ण एवं मृदुभाषण केरके सिद्धि प्राप्त करने वाले 'मेठी' गोत्री हुए।

(61) राजौरिया -ऋषि -शुनक ।प्रवर -शुनक ,शौनक ,गृत्समद ।कुलदेवी-सेतलवास।जयपुर के राजोर स्थान के निवासी 'राजोरिया' गौत्री कहे जाने वाले लगे  ।

(62) रावत – ऋषि -आलवायन ।प्रवर -आलवायन ,शालकायन,शकटायन ।कुलदेवी -ओरल।प्राचीन समय में राजस्थान में राजाओं की ओर से राव की पदवी मिलती थी जो कालान्तर में 'रावत' के नाम से विख्यात हुई । उन्हीं के वंशज 'रावत' कहलाये ।

(63) लाभी -ऋषि-जैमिन।प्रवर- जैमिन,उतथ्य,सांस्कृत।कुलदेवी-जीण।बिना किसी पूर्व योजना के क्रय विक्रय करते हुए लाभ उठाने वाले 'लाभी' कहलाये ।

(64)वैद-ऋषि-गर्ग । प्रवर- गार्ग्य,कौस्तुभ,माण्डव्य।कुलदेवी- माखद देशी जड़ी बूटियों के विशेषज्ञ एवं जन साधारण के हित में उचित कार्य करने वाले 'वैद्य' कहलाये।

(65). साकुनिया -ऋषि-जैमिन।प्रवर- जैमिन,उतथ्य,सांकृत।कुलदेवी-जीण।शौर्य, प्रतिभा, धर्म परायण व भविष्य की बात बोलने वाले पहले शकुनिया फिर साखुन्या और बद में 'साकूनिया' से विख्यात हुए ।

(66)सांवरिया(सामरिया) -ऋषि- काण्व।प्रवर- काण्व,अश्वत्थ,देवल।कुलदेवी-चामुंडा। राजस्थान के सांभर झील के आस पास के निवासी सामरया या 'सामरिया' कहलाये ।

(67) साहरिया (शाहरा) -ऋषि-जैमिन।प्रवर-जैमिन,उतथ्य,सांकृत।कुलदेवी-जीण।भारत में सहारा (अफ्रीका) से आए हुए लोग राजस्थान में वहां की जयवायु की समता के कारण आ बसे जो बाद में 'शाहरा' कहलाये।

(68) सिरोहिया -ऋषि-सौपायन। प्रवर-औवर्य,च्यवन,भृगु,जमदग्नि,आप्नुवान ।कुलदेवी-समगरा(करकट) आबू पर्व के नजदीक स्थित सिरोही स्थान के निवासी 'सिरोहिया' कहलाये ।

(69) सीगोदिया-ऋषि- काण्व । प्रवर- काण्व,अश्वत्थ,देवल ।कुलदेवी-चामुंडा।

(70)सेठी (सोनी) -ऋषि-गर्ग । प्रवर- गर्ग,कौस्तुभ,माण्डव्य।कुलदेवी-माखद।रईसो के वंशज एवं स्वर्ण चांदी का व्यापार करने वाले व आभूषण तैयार करने वाले 'सेठी-सोनी' कहलाये ।

(71) सौखियाँ -ऋषि-कृष्णात्रेय।प्रवर- कृष्णात्रेय,आत्रेय,बास।कुलदेवी-कुरसड।मथुरा जिले में बृज भूमि में सौंख के निवासी 'सौखियां' कहे जाने लगे ।

(72)हल्दिया -ऋषि-शांडिल्य । प्रवर- शांडिल्य,असित,देवल।कुलदेवी- सुरण्ड।हल्दीघाटी के निवासी 'हल्दिया' कहलाये।इनके पूर्वजः अभूतपूर्व यौद्धा थे।